90 hour work week: सप्ताह में 90 घंटे यानी प्रत्येक दिन आपको 13 घंटे काम करना चाहिए का सुझाव एलएंडटी चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन के द्वारा दिया गया है उनके इस बयान के कारण कई लोगों ने सोशल मीडिया पर उनको ट्रॉल भी करना शुरू कर दिया है ‘ अब आरएसएस और भाजपा तक जा पहुंची हैं। ज्यादातर लोगों और यहां तक कि अधिकांश उद्योगपतियों ने भी सुब्रह्मण्यन के सुझाव को खारिज कर दिया है जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस मुद्दे पर एक अलग ही विचार है।
हालांकि हम आपको बता दें कि जबकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में इसको लेकर अलग-अलग राय है। गौरतलब है कि सुब्रह्मण्यन ने जो कहा था, वो मुख्य रूप से निजी और कॉरपोरेट क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए था।
आखिर में 90 घंटे काम करने का मामला क्या है? (90 hour work week)
हाल ही में एक बड़े टेक्नोलॉजी लीडर या उद्यमी एस.एन. सुब्रह्मण्यन द्वारा एक इंटरव्यू में यह सुझाव दिया गया कि “सफलता पाने के लिए लोगों को अधिक मेहनत करनी चाहिए, और यह कभी-कभी 80 से 90 घंटे प्रति सप्ताह काम करने की मांग करता है।” इसके बाद सोशल मीडिया पर यह बयान वायरल हो गया। कुछ लोगों ने इसे “सक्सेस मंत्रा” के रूप में देखा, तो कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया है और कहा है कि ऐसा करना शोषणकारी होगा।
कानूनी पहलू और नियम
श्कई देशों में श्रम कानून काम के घंटे को नियंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में Factories Act, 1948 और Shops and Establishments Act के तहत हफ्ते में अधिकतम 48 घंटे काम करने की सीमा तय की गई है। ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त वेतन का प्रावधान भी है। यूरोपीय संघ के अधिकांश देशों में भी हफ्ते में 35-40 घंटे काम करना आदर्श माना जाता है।
हालांकि जो लोग स्टार्टअप कंपनी स्टार्ट करते हैं वहां पर इस प्रकार के नियम लागू नहीं होते हैं वहां पर जो भी व्यक्ति स्टार्टअप बिजनेस शुरू करता है शुरुआत में उसे काफी मेहनत करनी होती है ऐसे में वहां पर सप्ताह में 40 घंटे से का काम स्टार्टअप के फाउंडर को करना पड़ सकता है
90 घंटे काम का प्रभाव (90 hour work week)
स्वास्थ्य पर प्रभाव:
लंबे समय तक काम करना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इससे तनाव, अनिद्रा, दिल की बीमारियां और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
उत्पादकता:
कई शोधों ने यह साबित किया है कि अधिक काम करने से उत्पादकता बढ़ने के बजाय घटती है। कर्मचारियों का मानसिक थकान और बर्नआउट उनके प्रदर्शन को कमजोर करता है।
कार्य-जीवन संतुलन:
90 घंटे काम करने से व्यक्ति का निजी जीवन पूरी तरह प्रभावित हो सकता है। परिवार और व्यक्तिगत समय के अभाव से रिश्तों पर असर पड़ता
90 घंटे काम करना क्या प्रैक्टिकल है?
जी बिल्कुल नहीं 90 घंटे काम करना प्रैक्टिकल नहीं है जैसा कि आप लोगों को मालूम है कि यदि कोई भी व्यक्ति 90 घंटे सप्ताह में काम करता है तो इससे उसका पर्सनल जीवन काफी प्रभावित होगा और उसका स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है इसलिए 90 घंटे काम करना प्रैक्टिकल नहीं है या अभी बारीक है हालांकि हम आपको बता दें कि आपातकालीन सेवाओं में 90 घंटे काम करना आवश्यक हो सकता हैं।